उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ तथा नोएडा में पुलिस विभाग में कमिश्नर प्रणाली लागू होने के बाद अब एक और बड़ा फैसला लिया गया है। राज्य में एक लम्बे अरसे से पुलिस की शान रही 303 बोर की राइफल की हमेशा के लिए विदाई होने वाली है। इस साल 26 जनवरी को परेड में 303 बोर की राइफलें जवानों के हाथों में आखरी बार नज़र आएंगी। उत्तर प्रदेश की पुलिस यह राइफलें सन 1945 से लगातार इस्तेमाल की जा रही थी जिनकी अब अंतिम विदाई का समय आ गया है। कारगिल युद्ध के समय मे भी सन 1999 में यह राइफलें काफी उपयोगी सिद्ध हुई थीं।
उत्तर प्रदेश पुलिस से 303 बोर की इन राइफलों को हटाने की शुरुआत सन 2005 से हो गई थी जिन्हे अब पूरी तरह से समाप्त कर दिया जाएगा। इन्ही राइफलों ने चंबल के डाकुओं समेत बीहड़ में अपराधियों को ख़त्म करने में अपना लोहा मनवाया था। लेकिन अब इन पुरानी राइफलों को इंसास तथा एसएलआर से बदल दिया जाएगा और पुरानी सभी राइफलों को आरआई के पास मालखाने में जमा करवा दिया जाएगा। 303 बोर की राइफलों की मारक क्षमता लगभग 2 किलोमीटर तक है।
प्रथम विश्वयुद्द के दौरान 303 बोर की राइफलों की एक अलग पहचान बन गई थी और इनको पहले ली एनफील्ड के नाम से पहचाना जाता था। सबसे पहले इन राइफलों का इस्तेमाल ब्रितानी साम्राज्य और कामनवेल्थ देशों मे 20वी शताब्दी के पूर्वार्ध में किया जाया करता था। यह राइफलें सबसे ज़्यादा सन 1895 से लेकर सन 1904 के बीच में बनाई गई थीं जबकि भारत में 303 बोर की राइफलों का उत्पादन सन 1901 में किया गया था।