दंगाईयों के पोस्टर हटाने के HC के आदेश को चुनौती देने योगी सरकार पहुंची SC

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यूपी सरकार द्वारा दंगाईयों के पोस्टर जगह-जगह लगाए जाने के फैसले को इलाहबाद हाई कोर्ट ने गलत बताया था और 16 मार्च तक पोस्टर को हटाने का आदेश दिया था। कोर्ट के इस आदेश को चुनौती देते हुए यूपी सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गयी और आज इस मामले पर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने भी हाई कोर्ट के द्वारा पूछे गए सवाल को पुनः पूछा की सरकार ने किस कानून के तहत पोस्टर लगाए है?

यूपी सरकार की तरफ सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा की निजता के अधिकार के कई आयाम हैं। एक व्यक्ति प्रदर्शन के दौरान बन्दुक चलता है और हिंसा में शामिल होता है। वो व्यक्ति निजता का दावा नहीं कर सकता है। कोर्ट ने कहा की अभी ऐसा कोई कानून नहीं है जो आपके इस फैसले का समर्थन करता हो,अगर ऐसा कोई कानून है तो आप बताईये।

अभिषेक मनु सिंघवी ने बाल यौन शोषण और हत्याओं के मामलों का उदाहरण देते हुए कहा की इस देश में ऐसा कानून कबसे आ गया की लोगों के नाम को सार्वजनिक करके उनकी मानहानि की जाये और यदि ऐसा होता है तो भीड़ उस सख्स को पहचान कर हत्या कर सकती है।

हिंसक प्रदर्शन के आरोपी शोएब की और से पेश वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंसाल्वेस ने कहा की शोएब अपने आप को पीड़ित महसूस कर रहा है। इसे डर है की कोई भी इसके घर आ सकता है और मार सकता है। एक और आरोपी की तरफ से पेश वकील ने कहा की सरकार के पास ऐसे पोस्टर लगाने का कोई अधिकार नहीं है। ये प्रतिशोधात्मक दृष्टिकोण है।

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फ़िलहाल अभी सुप्रीम कोर्ट ने इलाहबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है और इस मामले को बड़ी बेंच के पास भेज दिया है। बता दें आज छुट्टी वाले दिन कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई की है और मामले को गंभीर बताया है। इससे पहले इलाहबाद हाई कोर्ट ने भी छुट्टी वाले दिन इस मामले की सुनवाई की थी और पोस्टर को 16 मार्च तक हटाने का आदेश दिया था।

मालूम हो 19 दिसम्बर को लखनऊ में 4 थाना क्षेत्रों में हुई हिंसा में 1,55,62,337 रूपए की सार्वजनिक और निजी संपत्ति का नुकसान हुआ था। इस हिंसा में पुलिस ने 57 लोगों की पहचान कर वसूली के लिए नोटिस भेज दिया था और तय समय में भरपाई करने को कहा गया था। जो ऐसा नहीं करेगा उसकी संपत्ति को कुर्क करके नुकसान की भरपाई की जाएगी।

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