Shubh Mangal Zyada Saavdhan Review: गे कपल ने लोगो को हँसा-हँसा कर किया लोट-पोट

Shubh Mangal Zyada Saavdhan Review
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Shubh Mangal Zyada Saavdhan Review:सबसे हटकर फिल्में करने वाले Ayushman Khurana की फिल्म Shubh Mangal Zyada Saavdhan समलैंगिक फिल्मों के मामले में मील का पत्थर साबित हो सकती है। हालाँकि बॉलीवुड में इससे पहले कई बार समलैंगिक रिश्तों को दिखाया गया है लेकिन ज्यादातर फिल्मों में या तो इसे काफी हल्के और मसखरे अंदाज में स्टीरियोटाइप किया गया या फिर फायर, अलीगढ़ जैसी फिल्मों में किसी समलैंगिक इंसान की जिंदगी को काफी गंभीरता से दिखाया गया। हालांकि आयुष्मान की ये फिल्म इस अंदाज में अलग है कि ना सिर्फ ये गे रिलेशनशिप्स को छोटे शहरों में सामान्यीकरण करने की कोशिश करती है बल्कि इसे लेकर समाज में फैली धारणाओं को काफी फनी अंदाज में दिखाती है।

आनंद एल राय निर्मित और हितेश केवल्या निर्देशित Shubh Mangal Zyada Saavdhan फिल्म समलैंगिक कम्युनिटी की बेबसी और संघर्ष को बयां करता है। वाकई आज भले कानून ने समलैंगिता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया हो, मगर समलैंगिक समुदाय को होमोफोबिया के रूप में अपने ही परिवारों से घृणा, तिरस्कार और रिजेक्शन सहना पड़ता है। फिल्म इस पॉइंट को साबित करने में सफल साबित होती है कि सिर्फ कानून बनाने से बात नहीं बनेगी, सामजिक तौर पर यह काउंसिलिंग होनी भी जरूरी है कि होमोसेक्शुऐलिटी कोई बीमारी नहीं बल्कि कुदरत है, प्रकृति है और उससे आप नफरत नहीं कर सक सकते।

जाने क्या है फिल्म की कहानी

कहानी के शुरुआती दौर में ही यह साफ हो जाता है कि कार्तिक गे है और वह अमन त्रिपाठी से प्यार करता है। उनका असली संघर्ष तब शुरू होता है, जब अमन की कजिन की शादी के दौरान अमन के पिता शंकर त्रिपाठी उन दोनों को ट्रेन में चुम्बन करते हुए देख लेते हैं। अमन के पिता अपने बेटे की होमोसेक्शुऐलिटी को समझ भी नहीं पाए थे कि शादी के दौरान दोनों के रिश्ते का सच सबके सामने आ जाता है। उसके बाद तो दोनों के प्यार में कई दीवारें खड़ी करने की कोशिश की जाती हैं।

कार्तिक को मारा-पीटा जाता है। संयुक्त परिवार में भाई, बहन चाचा-चाची के बीच मां अमन को समझाने की कोशिश करती है कि इस ‘बीमारी’ का इलाज संभव है। मां पंडित जी से कर्म-कांड करवा कर अमन का अंतिम संस्कार कर उसे नया जन्म देने की विधि भी करवाती है। और तो और पिता आत्महत्या की कोशिश और धमकी देकर अमन को शादी करने पर मजबूर भी कर देते हैं। पिता और परिवार के लिए अमन शादी करने को राजी हो जाता है। मगर कार्तिक लगातार अमन को समझाता रहता है कि उसे अपने प्यार के लिए आगे आना होगा? क्या कार्तिक और अमन अपनी सेक्शुऐलिटी के साथ परिवार की ऐक्सेप्टेंस हासिल कर पाते हैं? इसे जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।

फिल्म का डायरेक्शन

टैबू सब्जेक्ट, छोटे शहर की आबोहवा और कॉमेडी के सहारे गंभीर मुद्दे को दर्शकों के सामने परोसना. आयुष्मान ने पिछले कुछ समय में अपने इसी फॉर्मूले के सहारे दर्शकों के बीच लोकप्रियता पाने में कामयाबी पाई है। हालांकि इस फिल्म में स्क्रिप्ट के स्तर पर उनसे थोड़ी चूक हो गई लगती है।

हितेश केवल्या द्वारा निर्देशित ये फिल्म यूं तो समलैंगिकता के स्टीरियोटाइप्स तोड़ने में कामयाब रहती है लेकिन फिल्म में आपको पता चल जाता है कि आगे क्या होने वाला है और इस मामले में ये फिल्म किसी भी स्तर पर आपको हैरान नहीं करती है जिसके चलते फिल्म में थोड़ी नीरसता फील होती है। फिल्म के फर्स्ट हाफ में आयुष्मान का अति उत्साह भी समझ से परे लगता है और फिल्म में कुछ सीक्वेंस भी ऐसे आते हैं जहां आपको एहसास होता है कि ये फिल्म रियैल्टी से दूर जा रही है। लेकिन फिल्म की इंप्रेसिव स्टार कास्ट और जबरदस्त कॉमिक डॉयलॉग्स काफी मनोरंजक हो जाते हैं। अगर इस फिल्म की एडिटिंग में थोड़ा और पैनापन होता तो ये फिल्म काफी शानदार बन सकती थी।

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कलाकारों की दिखी जबरदस्त एक्टिंग

Ayushman Khurana एक एफर्टलेस कलाकार हैं और इस फिल्म में वो ऐसा ही करते दिखाई देते हैं। हालांकि फिल्म के फर्स्ट हाफ में उनकी ओवरएक्साइटमेंट समझ नहीं आती है वही जितेंद्र कुमार एक परेशान युवक के तौर पर जंचते हैं. हालांकि इस फिल्म में लीड स्टारकास्ट से ज्यादा फिल्म के बाकी कलाकारों पर नजरें टिकी रहती हैं।

ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्मों के माफिक इस फिल्म में सभी कलाकारों को काफी स्पेस मिला है और वे इस मौके का पूरा फायदा उठाने में कामयाब रहे हैं। शंकर त्रिपाठी के तौर पर गजराज राव और उनकी पत्नी के तौर पर नीना गुप्ता ‘बधाई हो’ के बाद एक बार फिर अपनी केमिस्ट्री से दर्शकों का काफी मनोरंजन करते हैं। वही मनुऋषि चड्ढा ने चाचा के तौर पर और सुनीता राजवर ने चाची के तौर पर गजब कॉमेडी की है। सुनीता राजवर तो कई सीन्स में बाकी सभी कलाकारों पर भारी पड़ती हैं और उनकी कॉमिक टाइमिंग लाजवाब है। फिल्म में कई सीक्वेंस ऐसे हैं जहां दोनों भाईयों के बीच होती बहस यादगार सीन्स में तब्दील हो जाती है।

पढ़े फिल्म का Review

Ayushman Khurana के फैन हैं और निजी जीवन में आप होमोफोबिक भी हैं तो इस फिल्म के सहारे अपनी शंकाएं को काफी मनोरंजक अंदाज में दूर कर सकते हैं। इसके अलावा ये एक मनोरंजक फैमिली एंटरटेनर है जहां लगभग सभी सितारे बढ़िया एक्टिंग से समां बांध देते हैं। क्लाइमैक्स को फिल्माने में भी निर्देशक ने जल्दबाजी दिखाई है। फिल्म का फर्स्ट हाफ ज्यादा स्ट्रॉन्ग है। फिल्म के ‘शंकर त्रिपाठी बीमार बहुत बीमार, उस बीमारी का नाम होमोफोबिया है ये नहीं कहते गे कहते हैं’ जैसे फिल्म के कई डायलॉग्स चुटीले हैं। संगीत की बात करें, तो तनिष्क बागची का संगीतबद्ध ‘गबरू’ रेडियो मिर्ची के टॉप ट्वेंटी में आठवें पायदान पर है जबकि ‘अरे प्यार कर ले’ जैसे रिमिक्स को भी काफी पसंद किया जा रहा है।

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