प्रियंका की नजर यूपी पर, संगठन मजबूत करने के लिए इस प्लान पर कर रहीं हैं काम

यूपी के पहले सीएम गोविन्द बल्लभ पन्त से लेकर अखिलेश यादव और वर्तमान में योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल तक प्रदेश में कई पार्टियों का दबदबा रहा है। कभी सपा तो कभी भाजपा। कांग्रेस की सरकार को भी जनता ने सरआंखों पर बिठाया था। मगर अचानक कांग्रेसियों से पब्लिक का मोह ऐसा भंग हुआ की 1989 के बाद से कांग्रेस को यूपी से बाहर का रास्ता देखना पड़ा।

कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी और अखिलेश यादव के चुनावी गठबंधन से कांग्रेस जो कांग्रेसी उत्साहित थे। उन्हें भी निराशा का सामना करना पड़ा वर्ष 1989 से 2017 तक और वर्तमान में यानी 2019 तक यूपी से बाहर का रास्ता देखने वाली कांग्रेस को इस बार सत्ता में वापसी की आस बंधी हुई है और ये आस है प्रियंका की एक्टिवनेस की जिसको देखने के बाद कहना गलत नही होगा कि यूपी पर अब प्रियंका की निगाह है और वो 2022 के लिए अपनी व अपनी पार्टी की कमर भी कस चुकी है।

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी तरह हार के बाद प्रियंका गांधी लगातार उत्तर प्रदेश में संजीवनी की तलाश कर रही हैं ।बीते दिनों कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश के राजनैतिक परिवेश को लेकर प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं के साथ नई दिल्ली में बैठक की ।ये बैठक प्रदेश कांग्रेस संगठन को लेकर काफी अहम मानी जा रही थी इसमे प्रदेश संगठन के कई नामों पर चर्चा हुई ,बैठक के बाद प्रदेश में होने वाले उपचुनाव के लिए पांच प्रत्याशियों की लिस्ट भी जारी की गई लेकिन अभी तक किसी प्रकार की संगठन को लेकर कोई आधिकारिक घोषणा नही की गई है।

प्रियंका गांधी के पदयात्रा में मची भगदड़, कई पत्रकार हुए घायल

प्रियंका गांधी इन दिनों उत्तर प्रदेश को लेकर काफी सजग नजर आ रही है ,सोनभद्र में हुई घटना के बाद जिस तरह से प्रियंका गांधी ने सुर्खियां बटोरी तो यह बात तो साफ है की उनकी नजर अब यूपी पर ही है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभारी ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभारी पद से इस्तीफ़े के साथ ही पूरे उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी प्रियंका गांधी के कंधों पर है हालांकि पार्टी की तरफ से अभी किसी प्रकार की आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है लेकिन प्रियंका गांधी जिस तरह से उत्तर प्रदेश की छोटी-बड़ी घटनाओं पर प्रदेश सरकार को घेरती नजर आ रही है इससे और भी साफ हो जाता है की प्रियंका गांधी अब पूरी तरह से उत्तर प्रदेश की राजनीति करेंगी ।

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा वैसे तो राष्ट्रीय स्तर की नेता है , कांग्रेस पार्टी में उनके कद से सभी भली-भांति परिचित है ,पार्टी में अप्रत्यक्ष रूप से उनको तीसरे नंबर की पोजीशन से कम नहीं आंका जा सकता ।फिलहाल उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की बदहाली को देखते हुए प्रियंका गांधी खासतौर से उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को मजबूत करने में लगी हुई है क्योंकि जिस तरह से कांग्रेस महासचिव बनने के बाद में प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश पहुंची थी ,जिस पर राहुल गांधी ने 2022 में प्रियंका गांधी से प्रदेश में सरकार बनाने का वादा लिया था तो प्रियंका उस वादे को पूरा करने में पूरी तरह से जी जान से लगी हुई।

सोनभद्र में हुए नरसंहार के बाद जिस तरह से प्रियंका गांधी प्रदेश सरकार का खुलकर विरोध करते नजर आयी तो वही कांग्रेसियों ने प्रियंका गांधी की तुलना इंदिरा गांधी की बिहार के एक गॉव बेलची की यात्रा से तक कर डाली। 1977 में सत्ता से बाहर होने के बाद इंदिरा गांधी बिहार के एक गांव बेलची में हुए दलितों के नरसंहार के बाद पीड़ितों से मिलने पहुंची थी। जहां बाढ़ जैसे हालात थे ,इंदिरा गांधी को हाथी पर चढ़कर जाना पड़ा था लेकिन फिर भी इंदिरा गांधी ने गांव के लोगों से मिलकर उनको ढांढस बंधाया। कहां जाता है कि इसी यात्रा के बाद इंदिरा गांधी कि सत्ता में वापसी की शुरुआत हुई। अब प्रियंका गांधी के लिए सोनभद्र की ये यात्रा कितनी महत्वपूर्ण रहने वाली है इस पर अभी कुछ नही कहा जा सकता ।

राजनीति के जानकारों की माने तो उनका कहना है की प्रियंका गांधी जिस तरह से उत्तर प्रदेश में अपनी भूमिका दिखा रही है उससे यह नजर आता है की प्रियंका की नजरों में उत्तर प्रदेश की कितनी कीमत है।प्रियंका को ये पता है की उत्तर प्रदेश से ही दिल्ली का रास्ता जाता है इसीलिए वो उत्तर प्रदेश में अपने पैर जमाने की कोशिश कर रही हैं हालांकि अभी प्रियंका गांधी के पास उस तरह का अनुभव नहीं है लेकिन इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता की राजनीति उनको विरासत में मिली है।

अगर आकड़ो की बात करे तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति दिन प्रतिदिन खराब ही होती नजर आ रही है ।2009 के लोकसभा चुनाव में जंहा कांग्रेस को उत्तर प्रदेश से 21 सीटें मिली थी तो 2014 में वो 2 तक ही सीमित रह गई।2019 में प्रियंका गांधी के आने से कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह तो दिखा लेकिन वो सड़को तक ही सीमित रह गया वोटो में तब्दील नही हो सका।जिससे कांग्रेस का वोट परसेंटेज तो घटा ही साथ ही राहुल गांधी अपनी पुश्तैनी सीट अमेठी तक हार गए।यही हाल विधानसभा चुनावों का भी है 2012 में जंहा 28 विधायकों वाली कांग्रेस पार्टी के पास 2017 में सपा के गठबंधन के बावजूद विधायकों की संख्या 7 पर ही रुक गई।पार्टी की सीटें तो घाटी ही साथ ही वोट परसेंटेज भी आधा हो गया।

उत्तर प्रदेश के मौजूदा दौर में कांग्रेस की स्थिति से ये बात तो साफ है कि कांग्रेस को एक कुशल नेतृत्व और शक्तिशाली संगठन की जरूरत है जिस पर प्रियंका गांधी पूरी तरह से मेहनत कर रही है। प्रियंका गांधी के आने से 2019 के चुनाव परिणाम तो उतने प्रभावी नही रहे लेकिन प्रियंका के प्रभाव को नजरअंदाज नही किया जा सकता । जिस तरह से सोनभद्र की प्रियंका गांधी की यात्रा से सड़कों पर कार्यकर्ताओं का प्रदर्शन दिखा उससे साफ होता है कि कांग्रेसी प्रियंका गांधी से बहुत उम्मीदें रखते है।

जंहा कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का भी यही मानना है कि सोनिया और राहुल के बाद कांग्रेस को कोई अगर एकजुट रख सकता है तो वो प्रियंका ही कर सकती है तो वंही विरोधी प्रियंका गांधी को परिवारवाद और रॉबर्ट वाड्रा के मुद्दे पर लगातार घेरते नजर आते है।अब प्रियंका गांधी इन सब के बीच किस तरह से सामंजस्य बैठती ये देखने वाली बात होगी ,फिलहाल ये कँहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को जीवित करने में प्रियंका गांधी पूरी तरह से लगी हुई है अब वो कितना कामयाब होती है ये आने वाला वक़्त ही बताएगा।

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