राष्‍ट्रपति के घुड़सवार अंगरक्षकों के बारे में ये खास बातें आप भी नहीं जानते होंगे…

President bodyguard
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आज पूरे देश में गणतंत्र दिवस का समारोह धूमधाम से मनाया जा रहा है। आज के दिन भारत के राष्ट्रपति राजपथ पर तिरंगा फहराते हैं और परेड की सलामी लेते हैं। गणतंत्र दिवस के समारोह में आपने पहले कभी राष्ट्रपति को बग्गी में जाते हुए और उनके पीछे-पीछे चल रहे अंगरक्षकों को तो जरुर देखा होगा। लेकिन वक्त के साथ-साथ ये चीज बदल गई और अब राष्ट्रपति बग्गी में नहीं जाते हैं, लेकिन राष्ट्रपति की सुरक्षा के लिए उनके अंगरक्षक (Bodyguard) जरुर पुरानी परंपरा को निभाते हुए घोड़ों पर सवार होकर उनके पीछे-पीछे जाते हैं। क्या आपको पता है कि, ये अंगरक्षक घोड़े पर सवार होकर ही क्यों चलते हैं, इसके पीछे की कहानी क्या है? हम आज आपको इसी परंपरा के बारे में विस्तार से जानकारी देने जा रहे हैं…

आपको बता दें, राष्‍ट्रपति के अंगरक्षक (bodyguard) जिन्‍हें अंग्रेजी ( English) में प्रेजीडेंट बॉडीगार्ड
(President bodyguard) या पीबीजी कहा जाता है, इनकी कहानी करीब 250 साल पुरानी है। जब 1773 में वारेन हैंस्टिंग्‍स को भारत का वायसराय जनरल बनाया गया तब उन्‍होंने अपनी सुरक्षा(Sefty) के लिए इस टुकड़ी का गठन किया था। उस समय उन्‍होंने युद्ध करने में कुशल लंबे कद के गठीले बदन वाले 50 जवानों को इस टुकड़ी में जगह दी। 1947 में भले ही देश की आजादी के बाद अंग्रेज हमेशा के लिए यहां से चले गए, लेकिन 1773 में बनाई गई यह रेजिमेंट तब से लेकर आज तक ठीक उसी तरह जारी है। पहले यह वायसराय की सुरक्षा के लिए थी अब यह राष्‍ट्रपति के अंगरक्षकों के लिए काम करती है।

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राष्‍ट्रपति अंगरक्षकों का रहा है खास इतिहास

राष्‍ट्रपति अंगरक्षकों की अपनी गौरवगाथा का लंबा इतिहास(History) है। इस रेजिमेंट में सेना की कई अलग-अलग टुकड़ियों से जवानों को चुना जाता है। इसमें शामिल जवान छह फीट या फिर उससे अधिक लंबे होने जरूरी हैं।  बता दें, मौजूदा समय में इस टुकड़ी में शामिल सभी जवानों को विशेष ट्रेनिंग (Training) दी जाती है। यह पैरा ट्रुपिंग (Para Trooping) से लेकर दूसरे क्षेत्रों में भी कुशल होते हैं। लेकिन इन सभी के बीच इनकी सबसे बड़ी पहचान होती हैं इनके खूबसूरत और मजबूत घोड़े। इस टुकड़ी में शामिल सभी जवानों को इनमें महारत होती है। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि जर्मन की खास किस्‍म के इन घोड़ों को ही केवल लंबे बाल रखने की इजाजत है। इनके अलावा सेना में शामिल दूसरे घोड़ों के बाल लंबे नहीं रख सकते हैं। करीब 500 kg वजन के ये घोड़े 50 किमी की स्‍पीड (Speed) से दौड़ सकते हैं।

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घोड़ों के साथ शुरु होता है राष्ट्रपति अंगरक्षकों का दिन

बता दें, राष्‍ट्रपति अंगरक्षकों के दिन की शुरुआत ही इन घोड़ों के साथ ही होती है। ये सभी जवान ड्रिल के तौर पर घोड़ों के साथ अपने दमखम को आजमाते हैं। इन जवानों को अपने घोड़ों पर इतनी महारत हासिल होती है कि यह 50 किमी प्रति घंटे की रफ्तार पर भी बिना लगाम थामे इन पर शान से सवारी कर सकते हैं। इनका रौबदार चेहरा, गठिला बदन, इनकी पोशाक सब कुछ बेहद खास होता है। राष्‍ट्रपति भवन में आने वाले हर गणमान्‍य व्‍यक्ति के लिए इनकी तैयारियां भी खास होती हैं। इसके अलावा इनके लिए एक दिन और खास होता है। ये दिन होता है जब राष्‍ट्रपति इन्‍हें अपना ध्‍वज सौंपते हैं। इसका इतिहास भी बहुत पुराना है। 1923 में ब्रिटिश वायसराय ने अपने इन अंगरक्षकों को दो सिल्‍वर ट्रंपेट और एक बैनर सौंपा था, इसके बाद से यह लगातार जारी है।

राष्ट्रपति अंगरक्षकों की खासियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है-

आजाद भारत में हर नया राष्‍ट्रपति अंगरक्षक की टुकड़ी के प्रमुख को अपना ट्रंपेट और बैनर सौंपते हैं। यह समारोह काफी शानदार होता है, जिसमें यह टुकड़ी अपना बेहतरीन प्रदर्शन करती है। इसमें गलती की कोई गुंजाइश नहीं होती है। इस समारोह में राष्‍ट्रपति के अलावा इस रेजिमेंट से जुड़े पूर्व अधिकारी और कैबिनेट के सदस्‍य भी शामिल होते हैं। राष्‍ट्रपति के अंगरक्षक की टुकड़ी दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में ही रहती है। अंगरक्षक की टुकड़ी की खासियत का अंदाजा आप इस बाते से लगा सकते हैं कि, कुछ वक्त पहले सिर्फ नौ अंगरक्षक पदों के लिए दस हजार आवेदन मिले थे।

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