वीर छत्रपति शिवाजी महाराज की पूरी कहानी

shivaji maharaj

Chatrpati Shivaji Maharaj : मराठा गौरव व हिन्दू ह्रदय सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म महाराष्ट्र के जुनेरी के पास शिव नेरी के किले में हुआ था। इनके पिता का नाम शाहजी भोसले और माता का नाम जीजाबाई था। शाहजी भोसले आदिल शाह की सेना में सेना अध्यक्ष थे। सेना अध्यक्ष होने की वजह से इनके ऊपर ज्यादा जिम्मेदारी थी, इसी वजह से वो अपने घर से ज्यादातर दूर रहते थे। ऐसे में जीजाबाई ने शिवाजी की परवरिश की और उनको महाभारत और रामायण जैसी हिन्दू धार्मिक कथाओं के बारे में बताती रहती व शिवजी को उनके गुरु दादूजी कोणदेव ने निति शाश्त्र और युद्ध कौशल सिखाया। 15 साल की छोटी सी उम्र में ही शिवाजी इतने बुद्धिमान थे की उनके आगे बड़े बड़े ज्ञाता भी नतमस्तक हो जाते थे।

भारत में उस समय मुगलों का राज था और उच्च पदों पर भी मुस्लिम धर्म के मानने वालों को नियुक्त किया जाता था पर कुछ पद ऐसे थे जिनपर हिन्दू धर्म के लोग भी थे। जैसे शिवजी के पिता शहाजी भोसले। इसी वजह से माता जीजाबाई का मन्ना था की शिवा जी भी बड़े होकर अपने पिता की तरह एक उच्च पद पर पहुंचेंगे पर नियति को कुछ और ही मंजूर था। वीर शिवा जी किसी उच्च पद पर बैठना नहीं बल्कि सम्राट बनना चाहते थे और एक सम्राट के सभी गुण उनमे थे।

15 वर्ष की आयु में तीन किलों को छीना

शिवाजी ने 15 साल की उम्र में ही अपनी खुद की सेना बनाना शुरू कर दी। उनको पता था की अगर किसी साम्राज्य की स्थापना करनी है तो उनके पास बल और किले दोनों होने चाहिए। इसके लिए शिवाजी ने अपनी बुद्धि का उपयोग कर आदिल शाह के अधिकारीयों को रिश्वत देकर तोडना शुरू कर दिया और 3 बड़े किले TORNA FORT ,चैंकान FORT ,KONDAN FORT पर अपना अधिकार कर लिया। इसके बाद कुछ ही समय में KALGAN FORT , BHIWANDI FORT व THONE FORT किले को मुल्ला अहमद से छीन लिया। छत्रपति शिवाजी महाराज ने आदिल शाह के साम्राज्य को हिला कर रख दिया। वो आग बबूला हो गया और वीर शिवाजी को रोकने के लिए उनके पिता को बंदी बना लिया। इसके बाद शिवाजी अगले 7 सालों तक शांत रहे और अपनी सेना को बढ़ाया व शक्तिशाली बनाया।

खुद की सेना बनायीं

थल सेना का नेतृत्व यशजी कन्क करते थे व घुड़ सवार सेना का नेतृत्व नेताजी पालकार और 1657 तक शिवाजी के अधिकार में 40 किले थे। इस समय उनकी उम्र मात्र 25 वर्ष थी। मुगल साम्राज्य को उन्होंने पूरी तरह से हिला कर रख दिया था और सभी वीर शिवाजी से डरने लगे थे। शिवाजी के प्रभाव को रोकने के लिए 1659 में बीजापुर की बड़ी साहिबा ने अफजल खां के साथ 10 हजार सैनिकों को शिवाजी को हराने के लिए भेजा। अफजल खां ने शिवा जी को उगसाने के लिए निर्दोष लोगों को मारने लगा और हिन्दू मंदिरों को तोडना शुरू कर दिया पर शिवाजी अफजल खां की चाल को समझ चुके थे और उन्होंने छापामार युद्ध पद्यति का उपयोग करते हुए युद्ध किया।

शिवाजी महाराज को मारने की योजना बनायीं

अफजल खां ने वीर शिवाजी को धोखे से मारने की योजना के तहत मिलने का न्योता भेजा और जब शिवा जी और अफजल खां गले मिले तो अफजल खां ने शिवाजी को कसकर दबा लिया और मारने की कोशिश की पर शिवाजी ने अपने वाग नागा से उसके पेट को एक बार में फाड़ दिया। फिर वो किले से बाहर आये और अफजल खां की सेना को युद्ध में पराजित कर दिया। इसके बाद 1659 में एक बार फिर हार से तलमलाये बीजापुर सुल्तान ने रुस्तम को भेजा पर वीर शिवा जीने उसे भी धुल चटा दी और रुस्तम अपनी जान बचाकर वहां से भागा।

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इसके बाद बौखलाए आदिल शाह ने 1660 में अपने सेनापति सिद्दी जौहर को शिवाजी पर आक्रमण करने के लिए भेजा। सेनापति सिद्दी जौहर ने पनहाल के किले को घेर लिया। शिवजी उस समय किले में ही थे तो उन्होंने सेनापति सिद्दी जौहर को मिलने का न्योता भेजा। जब सेनापति सिद्दी जौहर शिवाजी से मिलने आया तो उन्होंने इसी दौरान आदिल शाह को सन्देश भेज दिया की सेनापति सिद्दी जौहर ने गद्दारी की है। ये सन्देश सुन आदिल शाह ने गुस्से में आकर सेनापति सिद्दी जौहर पर हमला कर दिया। इस दौरान नाजीप्रभु ने दोनों दुश्मनों का ध्यान भटकाए रखा और शिवाजी किले से बाहर आये व वहां से सुरक्षित विशाल गढ़ पहुँच गए पर इस युद्ध में वीर नाजीप्रभु की मृत्यु हो गयी।

डेढ़ लाख सैनिकों को हराया

एक बार फिर शिवाजी की बुद्धिमता के आगे दुश्मनों की हार हुई इसके बाद बीजापुर की बड़ी बेगम ने औरंगजेब से विनती की कि वो वीर शिवाजी को पकडे। इसके बाद औरंगजेब ने 1 लाख 50 हजार सैनिकों को शाइस्ता खान के साथ भेजा। इस विशाल सेना ने पुणे पर कब्ज़ा कर लिया और शिवजी के लाल महल पर कब्ज़ा कर लिया। शिवाजी ने अपने 400 सैनिकों के साथ बारातियों का रूप रख कर पूने पहुंच गए और महल में प्रवेश करके शाइस्ता खान से युद्ध किया। शाइस्ता खान अपनी जान बचाने के लिए महल की दिवार से कूदा, इसी बीच शिवाजी ने उसकी 3 उँगलियों को अपनी तलवार से काट दिया। इस तरह शिवाजी ने लाल महल पर पुनः अपना कब्ज़ा कर लिया।

वीर शिवाजी इस युद्ध में थे हारे 

इसके बाद शिवाजी ने मुगलों के व्यवसाय के केंद्र सूरत पर हमला कर उनकी कमर तोड़ दी। इससे औरंगजेब आग बाबुला हो गया और राजपूत सेना नायक मिर्जा राजा जय सिंह को 1 लाख 50 हजार सैनिकों के साथ शिवाजी पर आक्रमण करने के लिए भेजा। इस युद्ध में शिवाजी की हार हुई और उनको हर्जाने के रूप में अपने 23 किले व 4 लाख की मुद्रा देना पड़ा। यहाँ से शिवाजी को उनके पुत्र के साथ आगरा ले जय गया। औरंगजेब अचे से जनता था की शिवाजी को नियंत्रित करना मुश्किल गई पर ये आवश्यक भी है। पहले तय हुआ की शिवाजी को मुग़ल दरबार में ही कोई पद दे दिया जाये पर औरंगजेब इसके लिए तैयार नहीं हुआ क्योंकि उसको दर था कहीं बाकि की तरह उसका भी साम्राज्य वीर शिवाजी ख़त्म न कर दे। इसलिए उनको घर में नजरबन्द करने का आदेश दे दिया।

बुद्धिमता से किया पराजित

शिवाजी ने एक बार फिर योजना बनायीं और बीमारी का बहाना बनाकर अपनी इच्छा व्यक्त की कि वो जल्द ठीक होने और साधु संतो का आशीर्वाद पाने के लिए उनको मिठाई व उपहार भेजना चाहते है। इस तरह कई दिनों तक मिठाई और कुछ सामान वो भेजते रहे। जब मुगलों को विश्वास हो गया की इसमें शिवाजी की कोई चल नहीं है तो एक दिन शिवाजी ने श्रमिक का रूप बनाया और अपने बेटे संभाजी को सामान रखने वाले बक्से में छुपा दिया और इस तरह वो बाहर निकल गए। यहाँ से उन्होंने बहुत लम्बा सफर तय करते हुए मथुरा ,कशी ,गया ,पूरी,गोलकुंडा ,बीजापुर होते हुए रायगढ़ पहुंचे। 1670 तक उन्होंने मुगलों से कई बार लड़ाई की और उनको सबक सीखा दिया और अपने राज्य के एक बड़े हिस्से हो मुगलों से मुक्त करा दिया। शिवाजी के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए औरंगजेब घबरा गया। उसे अपनी गद्दी भी खतरे में नजर आने लगी। औरंगजेब ने कई बार शिवाजी को रोकने का प्रयास किया पर हर बार वो असफल हुआ।

300 किले और 1 लाख सैनिक 

सन 1672 में आदिल शाह की मृत्यु हो गयी और बीजापुर सल्तनत पर अब शिवाजी का अधिकार हो गया व 6 जून 1674 का राज्याभिषेक किया गया। हिन्दू रीती-रिवाजों के साथ गंगाभट्ट ने सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक किया। सन 1646 में जब वीर शिवाजी 15 वर्ष के थे तो उनके पास कुछ नहीं था पर 1680 आते-आते 300 किले और 1 लाख सैनिकों की फ़ौज तैयार कर ली थी। शिवाजी जब 52 वर्ष के हुए तो उनका स्वास्थ्य खराब हो गया और 5 अप्रेल 1680 को उनकी दुखद मृत्यु हो गयी पर आज भी और आने वाले अनंत वर्षों तक सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज हमारे दिलों में जीवित रहेंगे व उनकी गाथा अमर रहेगी। ऐसे वीर महापुरुष लाखों वर्षों में एक बार धरती पर जन्म लेते है। छत्रपति शिवाजी महाराज की जितनी प्रशंसा की जाये उतनी कम है।

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