हॉकी स्टिक में चुम्बक और गोंद लगाकर खेलते थे मेजर ध्यानचंद ?

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दुनियाभर में हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद की आज 3 दिसम्बर 2019 को 40 वीं पुण्यतिथि है। मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को हुआ था और मेजर ध्यानचंद की मृत्यु 3 दिसम्बर 1979 को हुई थी। मेजर ध्यानचंद भारतीय हॉकी टीम को जमीन से उठाकर दुनिया में शीर्ष पर पहुंचाने का काम किया। मेजर ध्यानचंद महज 16 साल की उम्र में ही सेना में शामिल हो गए थे और यहीं से ध्यानचंद के हॉकी का सफर शुरू होता है। ध्यानचंद को खेल की दुनिया में दद्दा कहा जाता है। मेजर ध्यानचंद के खेल के दम पर भारतीय हॉकी टीम ने हॉकी ओलम्पिक खेलों में गोल्ड मेडल की हैट्रिक भी लगाई।

ध्यानचंद से हॉकी के जादूगर कैसे बने

1922 में मेजर ध्यानचंद रेजीमेंट में सेना में शामिल हो गए, मेजर ध्यानचंद को हॉकी खेलने के लिए प्रेरणा देने वाले रेजीमेंट के एक सूबेदार मेजर बले तिवारी को माना जाता है। ध्यानचंद को जादूगर बनाने का श्रेय भी रेजीमेंट के सूबेदार मेजर को जाता है। सूबेदार मेजर भी एक हॉकी खिलाड़ी थे, ध्यानचंद भी उन्ही के साथ हॉकी खेलते थे। ध्यानचंद के अंदर हॉकी का जूनून इतना था की वह रात में भी चाँद की रोशनी में हॉकी खेलते थे। मेजर ध्यानचंद हॉकी की प्रैक्टिस दिनों रात करते रहते थे। रेजीमेंट के सूबेदार मेजर बले तिवारी की देखरेख में ध्यानचंद हॉकी खेलते रहे और कुछ ही दिनों में दुनिया के महान हॉकी खिलाड़ी बन गए। ध्यानचंद की हॉकी स्टिक से गेंद इस तरह चिपक जाती थी कि ऐसा लगता था कि उनकी स्टिक कोई जादुई स्टिक है। ध्यानचंद की इसी काबिलियत को देखकर उन्हें हॉकी का जादूगर कहा जाने लगा।

एम्सटर्डम ओलम्पिक 1928

भारतीय हॉकी टीम ने 1928 में पहली बार एम्सटर्डम ओलम्पिक खेलों में भाग लिया था, जिसमे भारत ने फाइनल मैच जीतकर स्वर्ण पदक पर अपना कब्ज़ा जमाया था। भारत का फाइनल मैच हालैंड से हुआ था जिसमे भारत ने हालैंड को 3 -0 से हराकर स्वर्ण पदक जीता। 3 गोल में से 2 मेजर ध्यानचंद ने अपनी जादुई स्टिक से लगाया था जिसकी बदौलत भारतीय हॉकी टीम पहली बार विश्व चैम्पियन बनी।

लॉस एंजिल्स ओलम्पिक 1932

भारतीय हॉकी टीम ने 1932 में लॉस एंजिल्स ओलम्पिक खेल में भाग लिया और इस खेल में भी भारत ने मेजर ध्यानचंद की जादुई स्टिक की बदौलत स्वर्ण पदक पर अपना कब्ज़ा जमाया। लॉस एंजिल्स ओलम्पिक में भारत का फाइनल मैच अमेरिका से हुआ, भारतीय टीम ने अमेरिका को 24 -1 से हराकर एक बार फिर विश्व चैम्पियन बनी। इस मैच में मेजर ध्यानचंद ने 8 गोल किये थे और ध्यानचंद के भाई रूप सिंह ने 10 गोल किये थे। दोनों भाइयों की बदौलत अमेरिका को बहुत ही बुरी हार का सामना करना पड़ा। अमेरिका के इस बुरी हार के बाद अमेरिका के एक समाचार पत्र ने लिखा था कि भारतीय हॉकी टीम तो पूर्व से आया तूफान है। उसने अपने वेग से अमेरिकी टीम के ग्यारह खिलाड़ियों को कुचल कर रख दिया है।

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बर्लिन ओलम्पिक 1936

भारतीय हॉकी टीम ने 1936 में बर्लिन ओलम्पिक खेल में भाग लिया और इस खेल में भी भारत ने स्वर्ण पदक पर अपना कब्ज़ा जमाया। इस ओलम्पिक खेल में भारतीय टीम की अगुवाई खुद मेजर ध्यानचंद को सौंपी गई। इस ओलम्पिक खेल में भारत का फाइनल मैच जर्मनी से हुआ। मेजर ध्यानचंद की अगुवाई में भारतीय टीम ने जर्मनी को 8 -1 से हराकर एक बार फिर ओलम्पिक विश्व चैम्पियन बनी। और लगातार तीन बार ओलम्पिक खेलों में स्वर्ण पदक जीतने की हैट्रिक भी लगाने का विश्व रिकार्ड बनाया।

ध्यानचंद की रोचक बातें

  • मेजर ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर कहा जाता है, उनकी खेलने की काबिलियत से लगता था की उनकी हॉकी स्टिक कोई जादुई स्टिक है।
  • मेजर ध्यानचंद की हॉकी स्टिक में चुम्बक लगा होने के शक से एक बार हालैंड में ध्यानचंद की हॉकी स्टिक को तोड़कर चेक किया गया।
  • ध्यानचंद की काबिलियत से जापान में ध्यानचंद की हॉकी स्टिक से जिस तरह गेंद चिपकी रहती थी उसे देख कर उनकी हॉकी स्टिक में गोंद लगे होने की बात कही गई।
  • ध्यानचंद की काबिलियत को देखकर हॉकी के प्रेमी तो वाह-वाह करते ही थे, उनकी काबिलियत पर उनके प्रतिद्वंदी भी उनकी वाह-वाह करते थे।
  • ध्यानचंद की काबिलियत को देखकर जर्मनी के हिटलर भी मुरीद हो गए थे और ध्यानचंद को जर्मनी के लिए खेलने को कहा, लेकिन ध्यानचंद ने इसको इंकार कर दिया और कहा की भारत के लिए खेलना मेरे लिए सबसे बड़ी गौरव की बात है। मैं मरते दम तक भारत के लिए ही खेलूंगा।
  • ध्यानचंद के जन्मदिन को भारत में खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • मेजर ध्यानचंद को 1956 में भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्म भूषन से नवाजा गया।

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