कानपुर : फूल उगाने वालों पर लगे कोरोना वायरस के डंक,आत्महत्या करने को मजबूर

flower growers
Kanpur

कानपुर : – इंसान के जीवन में फूलों यानी पुष्प का बड़ा महत्व है , ख़ुशी हो दुःख हो या पूजा पाठ करना हो सबसे पहला महत्व फूलों को दिया जाता है। इन्ही फूलों को अपने खेतो में उगाकर अपने 100 लोगो के परिवार की जीविका चलाने वाले किसान आज-कल कोरोना वायरस के डंक से लॉकडाउन की स्थिति में भुखमरी के कगार पर आ गए है और आत्महत्या करने को मजबूर है।

कानपुर जिले के महाराजपुर थाना क्षेत्र के रूमा गाँव में 100 लोगो का किसान परिवार रहता है जो अपनी कई पीढ़ियों से फूलों की खेती कर अपनी जीविका चला रहा है लेकिन देश में फैले कोरोना वायरस के डंक से लॉकडाउन की स्थिति बन गई और ये किसान परिवार पहुँच गया भुखमरी के कगार पर। एक समय में इनके खेत में उगे हुए फूलों से आसपास के कई जिलों में कई परिवारों की रोजी रोटी चल रही थी। इनके पास करीब 18 बीघा खेती है और इन खेतो में ये साल के चार महीने फूल उगाते है और पूरे साल रोजी रोटी चलाते है लेकिन इस साल इनके खेतो में उगे हुए फूलों को ये किसान परिवार खुद ही अपने हाँथो से तोड़कर खेतो में फेंकना इनकी मजबूरी है क्योकि लॉकडाउन में फूल बिक नहीं रहे है और फूलों को डाल से तोड़ेंगे नहीं तो अगली फसल के बीज भी नहीं मिलेंगे।

किसान परिवार के मुखिया शिवनारायण कुशवाहा बताते है कि अपने 18 बीघे खेतो में चार महीने फूल उगाते है और जिसमे लागत करीब 5 से 7 लाख रूपए आती है हम अपनी सारी जमा पूँजी यानी बचत लगा देते है और साल भर में 20 से 25 लाख कमाते है जिससे परिवार पूरे साल खाता पीता है और जो बचत करते है उसे अगली फसल से लिए रख देते है ये सब चार महीने के लिए होता है फिर बारिश शुरू हो जाती है इसके बाद खेतों में 8 महीने पानी भरा रहता है जिस कारण उसमे कोई खेती नहीं हो सकती।

शिवनारायण के परिवार ने इस बार भी पूरी मेहनत से फूलों की खेती की और जब कोरोना वायरस के कारण फूल बाहर नहीं बिक सके तो परिवार भुखमरी के कगार पर पहुँच गया परिवार की महिला सदस्य बार बार बोल रही है कि अब हम क्या करे हम तो बर्बाद हो गए। फूलों की खेती करने वाला ये किसान परिवार कानपुर में फूलों की खेती कर कानपुर के आसपास के जिलों में इसकी सप्लाई करता था लेकिन लॉकडाउन के चलते इनकी सप्लाई ठप्प हो चुकी है लेकिन फसल पूरी तरह तैयार है तो बेचारा किसान मेहनत से उगाए फूलों को तोड़ तोड़ कर फेंकने को मजबूर है।

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