Thappad movie review: आत्मसम्मान की कहानी और समाज की कड़वी सच्चाई है फिल्म थप्पड़

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28 फरवरी को निर्देशक अनुभव सिन्हा की फिल्म “थप्पड़” सिनेमाघरों में रिलीज हुई है। फिल्म का ट्रेलर रिलीज होने के बाद से ही इसे लेकर काफी चर्चा होती रही है। निर्देशक अनुभव सिन्हा ने इसके पहले भी सामाजिक मुद्दे और समाज की कड़वी सच्चाई पर आधारित कई फिल्में बनाई हैं जो काफी पसंद की गईं।

निर्देशक अनुभव सिन्हा ने मर्द होकर भी औरतों की भावनाओं पर जो कहानी लिखी है, वो काबिल-ए-तारीफ है। समाज की कड़वी सच्चाई को दिखाती फिल्म थप्पड़ हर मां, हर बेटी और हर पत्नी को देखनी ही चाहिए और वो भी अपने बेटे, अपने पिता या अपने पति के साथ। घरेलू हिंसा जैसे गंभीर लेकिन उपेक्षित मुद्दे को सिनेमा के परदे पर दिखाने वाली इस फिल्म में हिंसा के नाम पर सिर्फ एक थप्पड़ ही है। लेकिन सारा जोर इस बात पर है कि कोई औरत सामाजिक मान्यताओं को बनाए रखने भर के लिए पति का एक थप्पड़ भी क्यों सहे? पार्टी में लोगों के सामने अपनी पत्नी को थप्पड़ मारने वाला पति कहता है- ‘‘बस एक थप्पड़ ही तो था.क्या करूं? हो गया ना.. लेकिन इससे ज्यादा जरूरी सवाल है यह है कि ऐसा हुआ क्यों? उसे किसने हक दिया अपनी पत्नी को थप्पड़ मारने का?

आपको बता दें, ये फिल्म मर्द और औरत के रिश्ते को दर्शाती है, जिसे अनुभव सिन्हा ने एक थप्पड़ के जरिए दिखाने का कोशिश की है। यह सोचने के लिए मजबूर करने की एक कोशिश है कि रिश्ते में आप जिन छोटी-छोटी बातों को नजरअंदाज कर देते है, क्या उन्हें इग्नोर किया जाना चाहिए? फिल्म आपसे सवाल करती है कि रिश्ते में हम-एक दूसरे को कितनी इज्जत दे रहे हैं?

फिल्म में अमृता (तापसी पन्नू) एक आम गृहणी की भूमिका में है जो दिन-रात पति और ससुराल वालों की सेवा में लगी रहती है। वो उन्हें खुश रखने के लिए जी-जान से जुटी रहती है। लेकिन एक उसका पति विक्रम (राजकुमार राव) है जो अपने दफ्तर की सियासत को भी घर की चाहरदीवारी तक ले आता है और ऑफिस की तमाम बातों में ही उलझा रहता है, उसे पत्नी के लिए वक्त देने या उसकी खुशी के लिए कुछ करने का भी ख्याल नहीं रहता। इसके बावजूद अमृता अपने पति का हर वक्त साथ देती है वो उससे कोई शिकायत तक नहीं करती।

एक दिन विक्रम घर में बड़ी पार्टी रखता है बहुत सारे लोग पार्टी में शामिल होते हैं। विक्रम के ऑफिस के सीनियर्स भी पार्टी में आते हैं। जहां पर वो ऑफिस की एक मैटर पर अपने सीनियर से काफी उलझ पड़ता है। मामला बढ़ते देख विक्रम की पत्नी अमृता विक्रम को रोकने और वहां से चलने के लिए कहती है। तभी ऑफिस की राजनीति का सारा गुस्सा विक्रम अपनी पत्नी पर एक जोरदार थप्पड़ मारकर निकाल देता है। भरी पार्टी में अमृता को थप्पड़ लगते देख सब लोग उसे ताकने लगते हैं कुछ सेकेंड के लिए चारों ओर सन्नाटा फैल जाता है। थप्पड़ खाने के बाद अमृता अंदर से टूट जाती है और ऐसा उसे देखकर ऐसा लगता है जैसे वो सदमें में चली गई हो। थप्पड़ खाकर अपने कमरे तक पहुंचने के लिए की गई वॉक में तापसी का चेहरा हर उस औरत को आईना दिखाती है जो परिवार के लिए सब कुछ करने के बाद भी किसी लायक नहीं समझी जाती और सब कुछ आसानी से सहन कर लेती है। लेकिन वहां मौजूद लोगों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता जैसे कुछ हुआ ही न हो। कोई भी विक्रम से एक बार भी ये नहीं बोलता कि तुमने गलत किया, तुम्हें अपनी पत्नी पर हाथ नहीं उठाना चाहिए। न ही विक्रम अमृता से थप्पड़ मारने के लेकर माफी मांगता है।

इन्हीं सब उपेक्षाओं के चलते अमृता अंदर ही अंदर चार दिनों तक घुटती रहती है। कुछ दिनों के वो अपने मायके भी चली जाती है। इसके बाद अपने आत्मसम्मान के लिए वो विक्रम से तलाक लेने का फैसला करती है। इस दौरान वो दो महीने की प्रेग्नेंट भी होती है, परिवार और ससुराल के सभी लोग उसे समझाने की कोशिश करते हैं कि तलाक लेने से उसकी प्रॉब्लम्स और बढ़ सकती हैं। लेकिन अमृता अपने फैसले पर कायम रहती है। आखिर में दोनों की सहमति से उनका तलाक हो जाता है। तापसी के अलावा फिल्म में साथ-साथ पांच और औरतों के जीवन के अंतर्विरोध दिखाए गए है। पांच अलग-अलग तबके से जुड़ी इन औरतों के जरिए निर्देशक अनुभव सिन्हा ने औरत की हर तकलीफ को परदे पर उतार दिया। बात करें एक किरदार तापसी की कामवाली(मेड) की जो कि, पति से मार खाने को ही अपना जीवन समझती है, लेकिन तापसी का सफर उसे हिम्मत देता है गलत के खिलाफ आवाज उठाने में। इसी तरह तापसी का केस लड़ने वाली वकील नेत्रा जयसिंह की कहानी दिखाई गई है। नेत्रा जयसिंह एक कामयाब वकील होने के साथ साथ मशहूर न्यूज एंकर मानव कौल की पत्नी हैं और बेहद कामयाब वकील की बहू। दो पुरुषों की कामयाबी किस तरह उसके व्यक्तित्व और अचीवमेंट को दबा रही है, इसका अंदाजा तापसी का केस लड़ने के दौरान नेत्रा को होता है और फिल्म के अंत में वह बेहद शालीनता से पति से अलग होने का साहसिक कदम उठाने से नहीं चूकतीं।

इस फिल्म में डायरेक्टर ने एक हिंट या क्लू पुरुषों को दिया है कि, कि जिसे वह समझ जाए तो घर टूटने की नौबत न आए, क्योंकि घर टूटने का खामियाजा पुरुषों से ज्यादा औरतों को भुगतना पड़ता है।

गौर करने वाली बात ये है कि, यह फिल्म घरेलू हिंसा की बजाय पुरूष के उस अहम की चर्चा करती है, जिसके बारे में समाज में चर्चा नहीं होती। फिल्म में जिस तरह से एक औरत अपने आत्मसम्मान के खातिर तलाक लेने जैसा बड़ा कदम उठाती है उसे सोच तक पाने की क्षमता अभी तक हमारे भारतीय पुरुषसत्तात्मक समाज में न के बराबर है।

बात एक थप्पड़ कि नहीं स्त्री के आत्मसम्मान की है। अफसोस इस बात का है कि लोग इस बात को एक सामान्य घटना या प्यार करने के एक तरीके के रूप में लेते हैं। नारी के प्रति सहानुभूति संवेदना या भावना नहीं पनपती है, जो कि, बहुत दुख की बात है। अब सवाल ये उठता है कि, बदलाव कैसे हो। 21 वीं सदी में नारी सशक्तिकरण के लिए तमाम प्रयास किए जा रहे हैं महिलाएं हर क्षेत्र में बड़े-बड़े मुकाम हासिल कर रही है। लेकिन इसके बावजूद कहीं न कहीं उन्हें मानसिक या शारीरिक प्रताड़ना का शिकार बनाया जाता है। बड़े-बुजुर्गों से अक्सर ये कहते हुए सुनने को मिलता है कि, औरत के पास बर्दाश्त करने की क्षमता होनी चाहिए, उन्हें सहनशील होना चाहिए। पर सबसे बड़ा सवाल ये है आखिर औरत क्यों बर्दाश्त करें गलत चीजें ?

यही सारे सवाल खड़ी करती है अनुभव सिन्हा की शानदार फिल्म “थप्पड़”। ये फिल्म समाज को सोचने को मजबूर करने वाली है आखिर क्यों नहीं हम पुरुषसत्तात्मक सोच से बाहर निकल पाते? घर-परिवार और हर रिश्ते को जोड़कर रखने की सारी जिम्मेदारी आखिर क्यों औरत के कंधों पर ही रखी जाती है?

Movie Review: थप्पड़
कलाकार: तापसी पन्नू, दीया मिर्जा पवैल गुलाटी, माया सराओ, रत्ना पाठक, राम कपूर, तनवी आजमी, कुमुद मिश्रा, और गीतिका वैद्य आदि
निर्देशक: अनुभव सिन्हा
निर्माता: भूषण कुमार, अनुभव सिन्हा, कृष्ण कुमार
हमारी रेटिंग: *****

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