Shikara Movie Review: कश्मीरी पंडितो का दर्द बयाँ करती Shikara Movie

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आज यानि 7 फरवरी को सिनेमाघरों में एक साथ दो बॉलीवुड फ़िल्में रिलीज हुई है। आपको बता दूँ की फिल्म Shikara सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है।इसके साथ यदि हम बात करें फिल्म की तो ऐसी फिल्में बॉलीवुड में कम ही बनती है। जिसे देखने के बाद आपकी आत्मा तृप्त हो जाती है। यह फिल्में आपको सोचने पर मजबूर करती है। आपकी आत्मा को झकझोर देती है।

साथ ही आपके सारे इमोशंस को पूरी ईमानदारी के साथ फिल्म की यात्रा में शामिल करती है और आप बेझिझक उन किरदारों की दुनिया में शामिल हो जाते हैं। फिर उनका दुख, उनकी तकलीफ, उनका सुख, उनका प्यार, सब कुछ आपका अपना हो जाता है। आप जब फिल्म के बाहर निकलते हैं तो फिल्म आपकी आत्मा में बसी रहती है। फिल्म शिकारा एक ऐसी ही फिल्म है। अब आप यह पढ़ कर फिल्म देखने के लिए पूरी तरह से उत्साहित होंगे। लेकिन फिल्म देखने से पहले रिव्यू पढ़ना बहुत जरुरी है।

यह है फिल्म की कहानी

यह कहानी है शिव और शांति की, जो कश्मीर में रह रहे सीधे-साधे कश्मीरी पंडित हैं। उनकी अपनी एक अलग ही दुनिया है। जिसमें ये प्यार मोहब्बत से रह रहे हैं। इनके लिए कश्मीर उतना ही है, जितना सबका। कहानी साल 1989 की है और इस वक्त कश्मीर की खूबसूरत वादियों में आतंकवाद पैर फैला रहा होता है। इसी दौरान लाखों कश्मीरी पंडितों को घाटी से बाहर किया जाता है, इसमें शिव और शांति भी शामिल हैं। जिन्हें अपना आशियाना छोड़कर रिफ्यूजी कैंप में जाना पड़ा।

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इसी के साथ उन्होंने किस तरह तमाम दर्द और पीड़ा झेलते हुए खूबसूरती से जिया..यही कहानी है फिल्म शिकारा की। निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा ने जिस तरह से अपनों से बिछड़ने के दर्द और अपने बसे बसाए आशियाने छोड़ने की पीड़ा और एक प्रेम की दास्तां को सुनहरे पर्दे पर रंगा है। ऐसा लगता है कि जैसे ये सब आप के ही साथ हो रहा हो।

पढ़े रिव्यू 

इस फिल्म की महानता यही है कि कहानी के चरित्र भी धार्मिक उद्वेग का शिकार हैं, मगर फिल्म के अंत तक मानवीय संवेदनाएं सबसे प्रमुख हो जाती है। निश्चित ही…इसके लिए विधु विनोद चोपड़ा बधाई के हकदार हैं। फिल्म भले ही कश्मीर की कहानी कहती हो, लेकिन इसका असर सार्वभौमिक है। अगर अभिनय की बात करें तो आदिल और सादिया दोनों ही अपनी लॉन्चिंग फिल्म के साथ जाने अनजाने ही सही अभिनय की उस अवस्था पर पहुंच गए हैं, जहां पहुंचना सभी के बस की बात नहीं होती।

हो सकता है उनकी आने वाली फिल्मों में शायद यह उत्कृष्टता देखने को ना मिले। हालांकि, शिव और शक्ति के किरदार में उन्होंने जो किया है, उसकी तलाश उन्हें जिंदगी भर रहेगी। प्रोडक्शन डिजाइन इतनी खूबसूरती से किया गया है कि उसकी जितनी तारीफ की जाए, उतनी कम है। रंगराजन राम भदरण का कैमरा वर्क फिल्म को एक अलग ऊंचाइयों पर ले जाता है। फिल्म का संगीत और फिल्म के गीत अपना मजबूत असर छोड़ते हैं।

सोचने पर कर देगी मजबूर

अगर इस फिल्म को आप एक प्रेम कहानी के रूप में देखेंगे, तो आपको प्रभावित करेगी, भावुक करेगी, आपमें करुणा भरेगी। लेकिन आप इसे कश्मीरी पंडितों के निष्कासन, उनकी त्रासदी से जोड़ कर देखेंगे, तो आप शययद निराश हो सकते हैं, क्योंकि इसमें उनकी पीड़ा को मुखर अभिव्यक्ति नहीं मिलती है। सिनेमाई मापदंडों के आधार पर यह एक श्रेष्ठ फिल्म है और असर छोड़ती है।

कुल मिलाकर यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि एक लंबे अरसे के बाद बॉलीवुड ने सही मायने में एक ऐसा सिनेमा गढ़ा है, जो विश्व सिनेमा की श्रेणी का है। यह फिल्म जरूर देखी जानी चाहिए और सपरिवार देखना चाहिए ताकि बच्चों पर इंसानियत के संस्कार पड़े। आप अपने इतिहास से रूबरू हो सके भले ही वह कितना ही काला क्यों ना हो।

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